दीपांजन रॉय चौधरी, नई दिल्ली
भारत-अमेरिका के बीच पांचवें दौर की बातचीत के नतीजे अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी के लिए बहुत उत्साह बढ़ाने वाला नहीं रहे। जॉन केरी को भारतीय नेताओं की जासूसी पर दो-टूक शब्दों में विरोध और प्रवासी भारतीयों से संबंधित विधेयक पर कड़े रुख का सामना करना पड़ा। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अब तक जॉन केरी अमेरिका की तरफ से भारत दौरे पर आए सबसे बड़े नेता हैं।
जॉन केरी यह उम्मीद ले कर भारत दौरे पर आए थे कि वार्ता के सकारात्मक पहलुओं के साथ पीएम मोदी की अमेरिकी यात्रा का माहौल बनाया जा सके। लेकिन भारत सरकार ने उनकी उम्मीद पर खड़े होने के बजाय वार्ता में अपनी प्राथमिकताओं पर ज्यादा जोर दिया। भारतीय नेताओं की जासूसी, प्रवासी भारतीयों से संबंधित विधेयक के अलावा आर्थिक सुधारों पर भी भारत ने अपनी स्वतंत्र राय को ज्यादा अहमियत दी।
केरी और उनके साथ आईं कॉमर्स सेक्रटरी पेनी प्रिट्जकर भारत सरकार को यह समझाने में विफल रहीं कि डब्ल्यूटीओ डील के खिलाफ मोदी सरकार अपना वोटी वापस ले ले। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार अमेरिकी एजेंसियों द्वारा भारतीय नेताओं की जासूसी, प्रवासी भारतीयों से संबंधित विधेयक पर सरकारी विरोध के अलावा बीजेपी ने भी स्नूपिंग (जासूसी) मुद्दे पर अपना कड़ा विरोध जता दिया है।
आधिकारिक सूत्रों ने यह भी बताया कि यूपीए-2 सरकार से उलट मोदी सरकार ने इन मुद्दों पर अपनी स्पष्ट राय रखी। मनमोहन नीत यूपीए-2 सरकार ने स्नूपिंग मसले पर अमेरिका के सामने कड़ा विरोध नहीं जताया था।
भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के साथ जॉन केरी के संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में केरी अपने इस बात से भी भारत सरकार को संतुष्ट नहीं कर पाए कि खुफिया मामलों को खुफिया विभागों तक ही सीमित रखना चाहिए। सुषमा स्वराज ने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में साफ-साफ कहा था कि भारत को इस तरह की जासूसी किसी भी हाल में स्वीकार्य नहीं है।
भारत-अमेरिका के बीच पांचवें दौर की बातचीत के नतीजे अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी के लिए बहुत उत्साह बढ़ाने वाला नहीं रहे। जॉन केरी को भारतीय नेताओं की जासूसी पर दो-टूक शब्दों में विरोध और प्रवासी भारतीयों से संबंधित विधेयक पर कड़े रुख का सामना करना पड़ा। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अब तक जॉन केरी अमेरिका की तरफ से भारत दौरे पर आए सबसे बड़े नेता हैं।
जॉन केरी यह उम्मीद ले कर भारत दौरे पर आए थे कि वार्ता के सकारात्मक पहलुओं के साथ पीएम मोदी की अमेरिकी यात्रा का माहौल बनाया जा सके। लेकिन भारत सरकार ने उनकी उम्मीद पर खड़े होने के बजाय वार्ता में अपनी प्राथमिकताओं पर ज्यादा जोर दिया। भारतीय नेताओं की जासूसी, प्रवासी भारतीयों से संबंधित विधेयक के अलावा आर्थिक सुधारों पर भी भारत ने अपनी स्वतंत्र राय को ज्यादा अहमियत दी।
केरी और उनके साथ आईं कॉमर्स सेक्रटरी पेनी प्रिट्जकर भारत सरकार को यह समझाने में विफल रहीं कि डब्ल्यूटीओ डील के खिलाफ मोदी सरकार अपना वोटी वापस ले ले। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार अमेरिकी एजेंसियों द्वारा भारतीय नेताओं की जासूसी, प्रवासी भारतीयों से संबंधित विधेयक पर सरकारी विरोध के अलावा बीजेपी ने भी स्नूपिंग (जासूसी) मुद्दे पर अपना कड़ा विरोध जता दिया है।
आधिकारिक सूत्रों ने यह भी बताया कि यूपीए-2 सरकार से उलट मोदी सरकार ने इन मुद्दों पर अपनी स्पष्ट राय रखी। मनमोहन नीत यूपीए-2 सरकार ने स्नूपिंग मसले पर अमेरिका के सामने कड़ा विरोध नहीं जताया था।
भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के साथ जॉन केरी के संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में केरी अपने इस बात से भी भारत सरकार को संतुष्ट नहीं कर पाए कि खुफिया मामलों को खुफिया विभागों तक ही सीमित रखना चाहिए। सुषमा स्वराज ने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में साफ-साफ कहा था कि भारत को इस तरह की जासूसी किसी भी हाल में स्वीकार्य नहीं है।