नई दिल्ली
दिल्ली में विधानसभा की सभी 70 सीटों पर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच वोट डाले गए। लोगों में वोट डालने के लिए गजब का उत्साह देखा गया। सुबह आठ बजे वोटिंग शुरू होने से पहले ही लोग पोलिंग बूथ पर लाइनों में खड़े नजर आए। अब तक के सारे रेकॉड तोड़ते हुए दिल्ली के मतदाताओं ने 65 फीसदी से भी ज्यादा वोटिंग दर्ज कराई। आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल, बीजेपी के सीएम कैंडिडेट हर्षवर्धन वोटिंग शुरू होते ही मतदान करने पहुंचे। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी पहले तो वोट डालने के लिए लाइन में लगी रहीं, लेकिन कुछ देर में ही सुरक्षा गार्ड उन्हें लाइन में से निकाल कर वोटिंग कराने ले गए। मेनका गांधी ने लाइन में लगकर वोट डाला। गौरतलब है कि दिल्ली में 2008 के विधानसभा चुनाव में कुल 57.58 प्रतिशत मतदान हुआ था।
वोट डालने के लिए लाइन से बाहर निकल गईं सोनिया गांधी और शीला दीक्षित
वोट डालने के बाद केजरीवाल
जानिए, आपका एक वोट कैसे कर सकता है बड़ी चोट
मुनीरिका में वोट डालने के लिए लगी लाइन
दिल्ली में पहली बार सभी सीटों पर तिकोना मुकाबला था। सारी पार्टियों के साथ-साथ वोटर भी असमंजस में थे कि आखिर क्या होगा। ये चुनाव दिल्ली के राजनीतिक भविष्य के साथ-साथ देश की राजनीति पर भी असर डालने वाले हैं। पिछले 15 साल से दिल्ली की गद्दी पर काबिज मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के लिए ये चुनाव सबसे कड़ी चुनौती थे।
अब तक तीन बार उन्होंने कांग्रेस को लगभग एकतरफा जीत दिलाई है लेकिन पहली बार वह आश्वस्त नहीं थीं। यहां तक कि राजनीतिक विश्लेषक नई दिल्ली सीट से उनकी अपनी जीत भी निश्चित नहीं मान रहे, जहां उनका मुकाबला बीजेपी के विजेंद्र गुप्ता और आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल से है।
70 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस ने पिछले तीन चुनावों में क्रमश: 53, 47 और 43 सीटें जीती थीं और बीजेपी के रूप में विपक्ष पूरी तरह सिमटकर रह गया था। इस बार 'आप' की मौजूदगी ने सारे समीकरण बदल दिए हैं। अलग-अलग सर्वे के अलग-अलग नतीजों ने कन्फ्यूजन बढ़ा दिया है। हालांकि लगभग सभी सर्वे कांग्रेस के चौथी बार सत्ता में न आने की भविष्यवाणी कर रहे हैं लेकिन कुछ सर्वे अब भी कांटे का मुकाबला दिखा रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि जनता महंगाई के कारण कांग्रेस से नाराज हैं। अब चुनावों का नतीजा इसी बात पर निर्भर करता है कि यह नाराजगी कितने वोटों में बदलती है। जाहिर है, ये नाराजगी भरे वोट बीजेपी और आप के बीच बंटने हैं। कांग्रेस और बीजेपी दोनों के अपने ट्रेडिशनल वोट बैंक हैं। अगर उसमें आप ने ज्यादा सेंध लगा दी और बीजेपी को कम हिस्सा मिला तो कांग्रेस का फायदा हो सकता है। अगर बीजेपी की झोली में ज्यादा वोट गए तो जीत उसके हिस्से आ सकती है।
करीब तीन हफ्ते के चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने विकास के मुद्दे को ही अपना आधार बनाया जबकि बीजेपी ने महंगाई को खूब उछाला। आप की ओर से स्वच्छ प्रशासन की बात कही गई लेकिन करप्शन या खराब प्रशासन चुनाव में मुद्दा नहीं बन पाए। कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान राहुल गांधी की रैली में कम भीड़ से हुआ। सोनिया गांधी की सिर्फ एक रैली और ऐनवक्त पर प्रधानमंत्री की वेस्ट दिल्ली में होने रैली रद्द होने से भी पार्टी का प्रचार यौवन पर नहीं आ पाया। दूसरी तरफ, बीजेपी के सारे नेता एकजुट होकर प्रचार करते नजर आए। आप के प्रचार को स्टिंग ऑपरेशन से धक्का लगा।
दिल्ली का वोटर कभी असमंजस में नहीं रहता लेकिन इस बार वोटरों की खामोशी क्या गुल खिलाएगी, इसका पता 8 दिसंबर को वोटों की गिनती से ही पता चल पाएगा।
दिल्ली में विधानसभा की सभी 70 सीटों पर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच वोट डाले गए। लोगों में वोट डालने के लिए गजब का उत्साह देखा गया। सुबह आठ बजे वोटिंग शुरू होने से पहले ही लोग पोलिंग बूथ पर लाइनों में खड़े नजर आए। अब तक के सारे रेकॉड तोड़ते हुए दिल्ली के मतदाताओं ने 65 फीसदी से भी ज्यादा वोटिंग दर्ज कराई। आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल, बीजेपी के सीएम कैंडिडेट हर्षवर्धन वोटिंग शुरू होते ही मतदान करने पहुंचे। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी पहले तो वोट डालने के लिए लाइन में लगी रहीं, लेकिन कुछ देर में ही सुरक्षा गार्ड उन्हें लाइन में से निकाल कर वोटिंग कराने ले गए। मेनका गांधी ने लाइन में लगकर वोट डाला। गौरतलब है कि दिल्ली में 2008 के विधानसभा चुनाव में कुल 57.58 प्रतिशत मतदान हुआ था।
वोट डालने के लिए लाइन से बाहर निकल गईं सोनिया गांधी और शीला दीक्षित
वोट डालने के बाद केजरीवाल
जानिए, आपका एक वोट कैसे कर सकता है बड़ी चोट
मुनीरिका में वोट डालने के लिए लगी लाइन
दिल्ली में पहली बार सभी सीटों पर तिकोना मुकाबला था। सारी पार्टियों के साथ-साथ वोटर भी असमंजस में थे कि आखिर क्या होगा। ये चुनाव दिल्ली के राजनीतिक भविष्य के साथ-साथ देश की राजनीति पर भी असर डालने वाले हैं। पिछले 15 साल से दिल्ली की गद्दी पर काबिज मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के लिए ये चुनाव सबसे कड़ी चुनौती थे।
अब तक तीन बार उन्होंने कांग्रेस को लगभग एकतरफा जीत दिलाई है लेकिन पहली बार वह आश्वस्त नहीं थीं। यहां तक कि राजनीतिक विश्लेषक नई दिल्ली सीट से उनकी अपनी जीत भी निश्चित नहीं मान रहे, जहां उनका मुकाबला बीजेपी के विजेंद्र गुप्ता और आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल से है।
70 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस ने पिछले तीन चुनावों में क्रमश: 53, 47 और 43 सीटें जीती थीं और बीजेपी के रूप में विपक्ष पूरी तरह सिमटकर रह गया था। इस बार 'आप' की मौजूदगी ने सारे समीकरण बदल दिए हैं। अलग-अलग सर्वे के अलग-अलग नतीजों ने कन्फ्यूजन बढ़ा दिया है। हालांकि लगभग सभी सर्वे कांग्रेस के चौथी बार सत्ता में न आने की भविष्यवाणी कर रहे हैं लेकिन कुछ सर्वे अब भी कांटे का मुकाबला दिखा रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि जनता महंगाई के कारण कांग्रेस से नाराज हैं। अब चुनावों का नतीजा इसी बात पर निर्भर करता है कि यह नाराजगी कितने वोटों में बदलती है। जाहिर है, ये नाराजगी भरे वोट बीजेपी और आप के बीच बंटने हैं। कांग्रेस और बीजेपी दोनों के अपने ट्रेडिशनल वोट बैंक हैं। अगर उसमें आप ने ज्यादा सेंध लगा दी और बीजेपी को कम हिस्सा मिला तो कांग्रेस का फायदा हो सकता है। अगर बीजेपी की झोली में ज्यादा वोट गए तो जीत उसके हिस्से आ सकती है।
करीब तीन हफ्ते के चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने विकास के मुद्दे को ही अपना आधार बनाया जबकि बीजेपी ने महंगाई को खूब उछाला। आप की ओर से स्वच्छ प्रशासन की बात कही गई लेकिन करप्शन या खराब प्रशासन चुनाव में मुद्दा नहीं बन पाए। कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान राहुल गांधी की रैली में कम भीड़ से हुआ। सोनिया गांधी की सिर्फ एक रैली और ऐनवक्त पर प्रधानमंत्री की वेस्ट दिल्ली में होने रैली रद्द होने से भी पार्टी का प्रचार यौवन पर नहीं आ पाया। दूसरी तरफ, बीजेपी के सारे नेता एकजुट होकर प्रचार करते नजर आए। आप के प्रचार को स्टिंग ऑपरेशन से धक्का लगा।
दिल्ली का वोटर कभी असमंजस में नहीं रहता लेकिन इस बार वोटरों की खामोशी क्या गुल खिलाएगी, इसका पता 8 दिसंबर को वोटों की गिनती से ही पता चल पाएगा।