अमनदीप सिंह, शांति वनस्टोरी की शुरूआत फ्लैशबैक से ...। 18 अगस्त को कश्मीरी गेट पर एक एसयूवी 13 लोगों के ऊपर चढ़ गई, जिसमें एक की मौत हो गई। 20 अगस्त को फिर एक एसयूवी ने रोड साइड सो रहे 3 लोगों को हॉस्पिटल पहुंचाया जिसमें एक की मौत हो गई और एक की हालत सीरियस है। लेकिन....इन लोगों को पेट की भूख ज्यादा डराती है ऐसे एक्सीडेंट्स से। कल रात को इत्तेफाक से ऑफिस से लेट निकला और शांति वन के पास पहुंचने पर यह दर्दनाक हादसा देखा। कार पलटी हुई...रिक्शे टूटे हुए...खून...और चीखें...। आनन-फानन में उन्हें वहां से हॉस्पिटल ले जाया गया और क्राइम इंवेस्टिगेंशन टीम ने पूरे स्पॉट पर मार्किंग करने के बाद वहां से सब कुछ क्लीयर कर दिया गया। कहानी का दी एंड!इसके बाद वहां का सीन...नॉर्मल। जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। स्पॉट पर कुछ 15 मिनट के बाद देखा कि दो लोग अपना बोरिया-बिस्तर लेकर वहां आ पहुंचे। नाम गफ्फार (40) और शोएब (28)। बात की...तो जवाब मिला 'क्या हुआ? यह सब हमारे लिए आम है। मुजफ्फरनगर से यहां आए गफ्फार ने बताया कि साहब 'रोज मौत के बगल में सोते हैं... इन एक्सीडेंट्स से ज्यादा भूख तड़पाती है। हमारी सुनने वाला है कौन?' यहां रोजाना करीब 20 से 30 लोग सोते हैं। कुछ रिक्शावाले होते हैं और कुछ मेरी तरह कूड़ा उठाने वाले। बात करते-करते गफ्फार की आंखों में आंसू आ गए...और उसने बताया कि इन आंसुओं को समझने वाला शायद भगवान भी नहीं है। यहां दिल्ली में किसी-किसी जगह नाइट शैल्टर हैं लेकिन रोज काम का ठिकाना बदलता है। ऐसे में जहां सड़क किनारे जगह मिलती है वहीं सो जाते हैं।जो लोग रात को ऑफिस से लेट नाइट घर आते होंगे या फिर घूमने निकलते होंगे उन्हें दिल्ली के इस लाइफ @ रोड साइड का अंदाजा जरूर होगा। कैसे यह लोग रिक्शे पर सोते हैं सोते हैं...और कैसे फुटपाथ पर सोते हैं। इन लोगों से बात करने पर जाना की गांवों में तो जमीनें हैं दिल्ली में किसी एक लोअर मिडल क्लास शख्स से ज्यादा लेकिन शहर में आकर कुछ एक्सट्रा की चाह इन्हें मौत से मिलवाती है।